सनातन धर्म में अति पवित्र मानजाने वाला श्रावण मास, इस बार इसका शुभारम्भ सोमवार के दिन से ही शुरू हो रहा है. यह संयोग वर्षो बाद ही बन पाता है. हिन्दू वर्ष के हिसाब से श्रावण मास वर्ष का पाँचवा माह है जबकि अंग्रेजी वर्ष के अनुसार यह मास जुलाई- अगस्त मे पड़ता है, और इस महीने कि सनातन धर्म ग्रंथो मे विशेष महिमा का वर्णन पढ़ने को मिलता है. वैसे भी गर्मी के मौसम मे चिलचिलाती गर्मी से परेशान लोगों मे सावन मास की शीतल बरसात मन को ख़ुशी से भर देती है. इसीलिए बरसात का मौसम क्या बूढ़े, बच्चे, स्त्री और जवान सबको कुछ ज्यादा ही प्रिय लगता है. गर्मी कि मार खाकर झुलस गए पेड़-पौधे नवजीवन कि तरुणाई पाकर हरे -भरे और लहलहा उठते है. इस बार सावन का एक महीना 29 दिन का है, और पूरे मास मे 5 सोमवार के दिन आपको मिल रहे है. 22 जुलाई से शुरू होने वाले इस श्रावण मास का हमारी आस्था से बड़ा ही गहरा नाता है. आखिर क्यों माना गया है ये महीना विशेष और क्यों है इसकी खास महत्ता हमारे धर्म ग्रंथो मे? इस सन्दर्भ मे बात करने लिए इस बिन्दुओ पर विचार महत्वपूर्ण है.
1: क्यों महत्त्व है सावन मास का:- ऐसा कहा जाता है कि माता सती भोलेनाथ से बिछड़ने के बाद उनसे पुनः मिलने के लिए व्याकुल हो उठी, भोलेनाथ सामाधीष्ट थे, उनसे मिलना असम्भव था. कहते है कि नारद मुनि ने भगवान शिव का पुनः सानिध्य पाने के लिए तपस्या करने मार्ग सुझाया, हालांकि ये रास्ता बहुत दुर्गम था लेकिन माता पार्वती ने भोलेनाथ के सानिध्य को पाने के लिए किसी प्रकार की परीक्षा से गुजरना मंजूर था. उन्होंने अपनी घोर तपस्या के बल से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और वह समय श्रावण मास था. माता पार्वती को उनके प्रिय भगवान शंकर का सानिध्य मिल गया इसलिए ये मास विशेष महत्व का मना गया है.
3: सावन मास में व्रत का क्या है महत्त्व:- प्रभु शिव जी बड़े ही भोले और दयालु कहे जाते है. सावन महीने में जिस तरह उन्होंने माता पार्वती को अपना सानिध्य प्रदान किया था, थी उसी तरह श्रद्धा और विश्वास के साथ जो भक्त सोमवार का व्रत और प्रेमपूर्वक भगवान शिव को जो प्रिय है उसको अर्पित (वेलपत्र, अक्षत, चन्दन, शहद, धतूरा, भांग ) करके जल, दूध, और दही से अभिषेक करता है तो भोलेनाथ प्रसन्न हो भक्तों का कल्याण करते है. इस मास में पूरे भारत में स्थापित बारह ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करना अति कल्याणकरी एवं महतम फालदाई माना गया है
4: कौन करसकता है भगवान भोलेनाथ की पूजा:- शिव जी को अवढरदानी कहा जाता है, उनके दरबार में कोई किसी उम्र का श्रद्धा से सिर झुकाकर उनका आशीर्वाद पा सकता है. भगवान शंकर तो सिर्फ भाव के भूखे है. इसीलिए कन्याये अच्छे पति के लिए और स्त्रियां अपने पति, परिवार की सुख समृद्धि के लिए सावन में अभिषेक करके प्रभु को प्रसन्न करती है.
5: क्यों की जाती है कावड़ यात्रा? :- कहते है भोलेनाथ ने भगीरथ के कठोर तप के कारण गंगा माँ को अपने सिर पर जटाओ में स्थान दिया था. इसीलिए भक्त इस सावन मास में माँ गंगा का जल भर कर देव भूमि हरिद्वार में जलाभिषेक करने दूर तक पैदल यात्रा करके प्रभु को उसी जल से अभिषेक करके पुण्य फल के भागी बनते है. भारत के पच्छिमी ततीय प्रदेश में सावन माह के अंतिम दिनों में नारियल पूर्णिमा का उत्सव मनाने का चलन देखने में आता है6:क्यों पहनती है सावन में स्त्रियां हरे वस्त्र और चूड़ियाँ:- भगवान शिव को समर्पित ये सावन का महीना उत्सव और उल्लास के साथ मनाने के लिए उत्तर भारत एवं पूर्वी भारत में स्त्रियों के द्वारा गहरे हरे रंग के परिधान और चूड़ियों के साथ विशेष श्रृंगार करने का भी चलन देखा जा सकता है. हरा रंग जहाँ भोलेनाथ को अधिक प्रिय है वहीं इसके पीछे मकसद शायद ये भी होता है की इस समय धान की फसल खेत में लहलाहा रही होती है जो समृद्धि का प्रतीक है. इसकारण गृहणीया हरे परिधान में श्रृंगार कर भोलेनाथ से सुख और समृद्धि की प्रार्थना करती है.
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥"
का शुद्ध अंतकरण से जप करना विशेष फलदाई माना जाता है.
डिस्कलेमर:- ये सारी जानकारी खास जानकारों की सूचना पर आधारित है, इसमे सुझाये गए व्रत उपवास और मंत्रो का जप इत्यादि पर अमल करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें. इसकी कोई जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी.
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