हम समाज के बिना अपने अस्तित्व को स्थापित करने की कल्पना नहीं कर सकते है किन्तु बदलते वक्त के साथ समाज का परिवेश बदल ने के कारण समाज में तारतम्य को नये ढंग से गढ़ना अपरिहार्य बन चुका है. हालांकि तकनिकी विकास ने जहाँ समय को एक ओर बचाने का काम किया है तो दूसरी तरफ एक नई चुनौती खड़ी कर दी है कि इस बचे हुए समय का किया क्या जाए? वैसे खाली समय को चुटकी में उड़ा लेजाने की भी पूरी व्यवस्था है. पर क्या उसके सहारे रहा जा सकता है? आप अपना खाली वक्त जिस वर्चुअल दुनिया पर लुटा रहे हो वह बदले में आपको दें क्या रहा है! एक जाल से निकलकर दूसरे जाल में फसने कि सलाह, आप में हीनभावना के पनपने की उर्वरा भूमि बना रहा है. झूठे छालावे की दुनिया में जीने की प्रेरणा दें रहा है. इन परिस्थितियों में ना हम दूसरों के लिए कोई समाधान बन पा रहे है और ना हम अपने लिए ही.
दोस्तों, हमें तब इन सब बातों का एहसास होता है जब समय हमारे सामने अचानक कुछ ऐसी स्थिति खड़ी कर देता है जिसके लिए हमने कभी सोचा भी नहीं होता है. तब हम पूरी तरह से खुद को अकेले पाते है. अभी जो हमारे चारों तरफ कथित अपने लोगों का घेरा था चंद पल में तार- तार हो जाता है. और यही वह क्षण होता है जानने का कि हम अपने कितने अच्छे हमराह है? जब छदम आवरण हटता है तो हम खुद को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा पाते है जहाँ हम तो होते है रास्ता गायब होता है. जीवन का रास्ता अकेले तय तो किया जा सकता है लेकिन एक हमराह अगर मिल जाता है तो राह कुछ आसान बन जाती है.
पर समस्या ये है कि एक अच्छा हमराह मिलेगा कैसे? और कैसे पता लगेगा कि कोई अच्छा मित्र है या कि नहीं. इस समस्या को लेकर आपको जितने भी उत्तर मिलेंगे, उनके विषय में पूरे विश्वास से ये नहीं कहा जा सकता कि वो आपके लिए सुटेबल होंगे या नहीं.
फिर तो पूरी लाईफ एक बेहतर साथी कि तलाश पूरी ही नहीं हो पायेगी. तब तो जीवन तन्हाई कि अँधेरी गली में भटक कर रह जायेगा?
शायद आप थोड़ा भय खा गए? लाजमी है, क्योंकि अंधेरा भला किसे अच्छा लगता है? लेकिन आपको निराश होने की जरूरत नहीं है. आपने एक दोहा सुना होगा.
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोई,
जो निज ढूंढा आपने मोसो बुरा न कोई.
शायद आप अभी भी असमंजस में फंसे है. अरे मान्यवर जब आप ही इस संसार में सबसे बुरे है तो आप ही तो इस संसार में अपने आप के अच्छे साथी या हमराह क्यों नहीं हो सकते? सोचिये, इस पर जरा बारीकी से विचार करके देखिए. आपके सामने जो संदेह का धुंधलका पड़ा है वह एक झटके में काफूर हो जायेगा.
बस कुछ बातों को अपने पल्लू से मजबूती से बाँधने का निश्चय या संकल्प करना पड़ेगा.
देखो मित्र, बिना हाथ पैर हिलाये आप एक जगह से दूसरी जगह भी नहीं जा सकते, तो भला आप अपने हमराह भला कुछ ठाने बिना कैसे बन सकते है?
और एक बार आपने खुद से दोस्ती करली तो यकीन मानो किसी और की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी. आप स्वयं के सच्चे साथी यदि बन गए, फिर आप को अपने मकसद में कामयाबी की पताका लहराने से शायद कोई रोक पाए.
किन्तु सारी कठिनाई यहीं उत्पन्न होती है की हम दूसरे को अपना साथी, या फिर परम मित्र बनाने के लिए हर जी तोड़ मेहनत करने के लिए तत्पर रहते है किन्तु स्वयं को लेकर यह तत्परता बिलकुल ही नहीं दिखाई देती है. इसके असंख्य उदाहरण आप अपने आस- पास स्पष्ट देंख सकते है. फेसबुक, इसँटाग्राम, ट्विटर (अब एक्स ) आदि प्लेटफार्म इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है. और इस विसंगति ने समाज में विश्वास, सौहार्द और अन्य सामाजिक मूल्यों को बहुत अधिक क्षति पहुंचने का काम किया है.
फिर भी मेरा मानना है उक्त मूल्यों का ह्रास तो हुआ है लेकिन यदि सकारात्मक सोच को विकसित की जाय तो पुनः सारे अच्छे प्रतिमानो को स्थापित किया जा सकता है. पर शर्त होगी स्वयं से पक्की एवं सच्ची वाली दोस्ती. क्योंकि विश्व का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसमे अपने आप से आँख से आँख मिलाकर झूठ बोलने का साहस हो. जब आप अपने प्रेम में होंगे, आप अपने साथ होंगे तो किसी अन्य के साथ होने या न होने की कमी जाती रहेगी.
अपने आप को साथी बनाने के लिए आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत भी नहीं है. सिर्फ एक ईमानदार प्रयास करने की कोशिश करनी है. और कुछ बातों पर विशेष गौर करने की आवश्यकता है.
1:- अपने 24 घंटे में से मात्र एक घंटा अपने आप पर खर्च कीजिये:- एक घंटा खुद पर खर्च करना कोई ज्यादा बड़ी डील नहीं है. वो भी ऐसे इक्कठा एक साथ नहीं खर्च करना है. आप पांच मिनट से शुरू कर सकते है. और ग्रेजुएली आगे बढ़ते जाइये. यदि ये प्रयास जारी रहा तो खुद महसूस कर लेना की आप अपनी चाह में पड़ने के बाद कितना हल्का फील कर रहे हो. बस अति की सीमा का विशेष ध्यान रखना वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.
2:- इस पांच मिनट का करेंगे क्या?:- ये पांच मिनट का समय आपको एक नियत समय पर एक जगह बैठकर सिर्फ शांत मन रहते हुए बिताना है. सभी चिंतन मनन से अलग अपने पास रहने की कोशिश कीजिए. सारे उटपटांग विचारों से दूर एक उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा अपने करीब आने की कोशिश.
3:- इस क्रम का समय धीरे - धीरे बढ़ाये:- इस क्रम को बढ़ाने में आप कतई जल्दबाजी न करें. इसे आप दो दिन के अंतराल पर बढ़ाने का प्रयास करें. क्योंकि जल्दबाजी हर काम के लिए घातक होती है. वो फायदा करने की बजाय नुकसान का कारण बन सकती है. भाई, बच्चा कितना भी तेजी से बढ़ने की कोशिश करले उसे सालभर का बनने के लिए 365 दिन का इंतजार तो करना ही पड़ेगा. सहज़ पके सो मीठा होय का रास्ता लेना ही पड़ेगा. तभी बात बान सकेगी.
4:- अपनी क्षमता से ज्यादा स्वयं से अपेक्षा मत कीजिये:- आपको को सुनने को मिलेगा कि मानव में अनंत सम्भावनाओं का भंडार है. ये एक आईडील कंडीशंन है. यहाँ तक पहुंचने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए पहले अपने भीतर क्षमता का विकास करें फिर खुद पर उम्मीदों का बोझ डाले. बिना आत्ममंथन के किसी की कोरी बातों के पीछे मत भागिए. यदि हम अपने प्रति ईमानदार है तो यह जरूर पता होगा की हमारी अपनी वर्तमान क्षमता क्या है, जब हमें भोजन करते समय हमारे पेट का अंदाजा रहता है फिर जहाँ जीवन का प्रश्न है वहां भला हम भोले कैसे बन सकते है?
5:- दूसरे की अति उत्साही वाली बातों के जाल में कभी न फंसे:- चने की झाड़ पर चढाने वाले आपको हार कदम पर मिल जायेंगे. उनकी अति उत्साही बातो का स्वयं को कभी शिकार मत होने दीजिये. वो आपकी चाभी ऐंठ कर चल देंगे अंत में जो भी उसका रिजल्ट होगा उससे निपटने की अंतिम जिम्मेवारी आप पर होगी. दूसरा ये कहता हुआ निकल लेगा कि यार मैंने तो सिर्फ सलाह दी थी. काम बिगड़ने के बाद मटका आपके सिर पर ही फुटना है. इसलिए
6:- तेति पैर पसारिये जेती चादर होय:- मुझे लगता है की जिसने भी इस लोकोक्ति को कहा होगा उसने बड़ा अनुभव एकत्र करने के बाद कहा होगा. हम दरअसल में समाज और उसमे रहने वाले लोगों को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा हो जाते है. किन्तु हम अपने लिए चिंतन करना भूल जाते है. और असल तकलीफ आपकी यहीं से शुरू हो जाती है. आपको सबसे पहले अपने लिए अच्छा बनाना है फिर दूसरो के लिए.
7:- मित्रो से जुड़े रहिये पर उनसे ज्यादा उम्मीद मत पालिये:- वैसे तो मित्र और जानने वालों में फर्क होता है. आपके अधिक से अधिक जानने वाले है, इसका ये मतलब बिलकुल मत निकालिये कि वे आपके सच्चे मित्र भी हो सकते है. सच्चा मित्र मिलना आपके भाग्यशाली होने का द्द्योतक है. क्योंकि गोस्वामी जी ने लिखा लिखा है-
"धीरज धर्म मित्र और नारी आपतकाल परखही चारी. "
इसलिए उम्मीदों कि गठरी जीतनी हलकी रखेंगे आप स्वयं को उतना ही सुखी पाएंगे. इसका एक कारण ये भी है की इस भगामभाग वाली दुनिया में सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में खुद को बंधनों के हवाले पहले ही कर चुके है, अब आप अपनी परेशानी उसके पास लेकर चले गए, वह आपकी मुसीबत सुनकर सहायता करने की नियत के बावजूद खुद की उलझनों के कारण आपके लिए कुछ भी ना कर पाए. और वैसे मित्र विरलेi ही मिलेंगे जो अपनी उलझनों के बाद भी आपका हाथ पकड़कर किनारे लाने के लिए डट जाये. और अगर कोई है तो समझिये वही आपका सच्चा मित्र है.
7:- दूसरे से खुद की तुलना करने से बचने का प्रयास करें :- इस छालावे में कभी मत आये की फला जो काम कर सकता है वह आप भी कर सकते है. यदि सबसे कार्य करने की क्षमता एक जैसी होती तो प्रकृति में विविधता का मतलब ही फिर क्या रह जायेगा. हां आप में जो खास है उसे तराशने से जरूर आप अपनी एक खास पहचान बना सकते है. तो दूसरों से तुलना करने कि वजाय अपनी क्षमता और प्रतिभा पर यकीन कर उसे अधिक से अधिक तराशने पर आपकी एक अलग पहचान बनेगी.
8:- हर समय चौकन्ना रहिये:- समय के हर मुवमेंट के साथ बदलाव का क्रम चलता रहता है. हमें खुद को हर परिवर्तन के लिए समझा कर रखना ही पड़ेगा. क्योंकि बाहरी परिवेश पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है, कंट्रोल है तो सिर्फ आपका अपने ऊपर इसलिए अपने आप मे किसी एक परिवेश का आदि होने कि कमजोरी को मत पनपने मत दीजिए.
9:- किसी और को अपने आपको यूज मत करने दीजिये:- यह कतई मत मान लीजिये कि दुनिया बहुत बुरी है. अच्छाई इस धरती पर जीवित है इसलिए ये पृथ्वी अपने अस्तित्व मे है. लेकिन जीवन मे आपका साबिका कभी ऐसे लोगों से भी पड़ जायेगा जिनका मकसद आपको सीढ़ी बनाकर अपना काम सीधा करना ही होगा, जैसे ही आप उनके स्वार्थ सिद्धि के लायक नहीं बचेंगे वो आपसे किनारा कर लेंगे.
9:- सीधे का मुँह कुत्ता चाटता है:- जंगल के सबसे सीधे पेड़ को पहले काटने का निशाना बनाया जाता है. मेरा मतलब ये बिलकुल नहीं है कि आप बात- बात पर युद्ध के लिए तैयार हो जाइये, बार सिर्फ ये है कि सामने वाले को ये कतई ना लगे कि इसे वेवकूफ बनाया जा सकता है, वह आपके सरल स्वाभाव को आपकी कमजोरी मत मान बैठे इसलिए बात का सदैव ख्याल रखिये.
ये जीवन एक खेल मे पार्टिसिपेशन है इसे किस शिद्दत से खेलना है इसका सारा जिम्मा हम पर है, हमने यदि अपने साथ ईमानदार रहते हुए खेल को पूरी निष्ठा के साथ खेला तो इसमें कोई दो राय नहीं कि जीत हमारी ही होगी, पर इस बात को जरूर जेहन मे जरूर रखिए खेल मे हर बार जीत नहीं मिलती, कभी - कभी करारी हार भी मिलती है. इसलिए हार के समय पर आपकी मानसिक मजबूत कि परीक्षा होती है. इसी समय पर यह परख होती है कि आप कितने अच्छे अपने मित्र है. कितने अच्छे अपने हमराह है. क्योंकि उस हार का दर्द सहना और उससे बाहर निकलकर फिर से नये सिरे से पूरे उत्साह से खेल के लिए निकल पड़ना वही कर सकता है जो अपना सच्चा हमराह होगा. सिर्फ इन चंद मोटा माटी बातों को हर हाल मैं अपने जेहन में बनाये रखना है.
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