Thursday, 25 July 2024

Holi, festival of colours:, होली कब है 2025

Holi festival of colours:-

होली लगभग पूरे भारत में मनाये जाने वाला महत्वपूर्ण त्यौहार है.

 इसे उत्सव के रूप में मनाये जाने के पीछे अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक विश्वास और कहानियाँ जुडी हुई है.

 2025 में ये पर्व 14 व 15 मार्च को मनाया जायेगा.

 

होली कब मनाई जाती है :-  होली बसंत पंचमी के त्यौहार के एक माह बाद फाल्गुन माह यानि मार्च महीने में मनाई जाती है. इस बार वर्ष 2025 में 13 मार्च को रात्रि 10: 30 के बाद होलिका दहन का मुहूर्त विद्वानों ने हिन्दू पंचांग के अनुसार निर्धारित किया है. धुरडंडी होली की तारीख 14 मार्च 2025 है.


होली कब और क्यों मनाई जाती है: पौराणिक कथा के अनुसार होलिका हिरनकश्यप की बहन थी. उसे यह वरदान था की वह जल नहीं सकती है. अहंकारी हिरनकश्यप भगवान विष्णु से मनचाहे वरदान पाकर स्वयं को ही भगवान मानने लगा. वह अपने पुत्र प्रहलाद को भी खुद को ईश्वर कहने के लिए विवश करने लगा परन्तु प्रहलाद ने ऐसा करने से मना कर दिया. क्रोधित होकर उसने प्रहलाद को तरह की यातना देना शुरू कर दिया. इसी क्रम में उसने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया. किन्तु हुआ हिरनयकश्यप की सोच से उल्टा. प्रहलाद भगवान विष्णु की कृपा से बच गया और होलिका स्वयं जलकर राख हो गई. तब से होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है.










Monday, 22 July 2024

क्यों मनाया जाता है तीज का त्यौहार (क्या है इसका इतिहास)

भगवान भोलेनाथ को समर्पित श्रावण मास में हरियाली तीज की अपनी एक अलग महत्ता है. शिवमहापुराण में इस त्यौहार के विषय में माता पार्वती विवाह के रूप में पढ़ने को मिलता है.

ये हरियाली तीज व्रत वैसे तो विवाहित स्त्रियों के लिए होता है जो इस व्रत को करके अपने जीवन साथी और परिवार की सुख एवं समृद्धि की माता पार्वती से प्रार्थना करती है.
ये व्रत विशेष रूप से माता गौरी की पूजा अर्चना का व्रत बताया गया है.         

तीज की पूजा क्यों की जाती है?:- शिवमहापुराण में कथा है की जब माता सती, अपने पिता दक्ष द्वारा यज्ञ में भोलेनाथ को निमंत्रण नहीं दिया जाता है तो वह बिना बुलाये यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण दें देती है. किन्तु जब माता सती के विरह में भोलेनाथ समाधि में चले जाते है तो दुबारा उनका जन्म हिमालय के यहाँ होता है. नारद मुनि जब हिमालय को यह बताते है कि पार्वती का विवाह शिव शंकर से होगा तो वे बड़े दुखी होते है पर बाद में मान जाते है. नारद जी कहते है कि इसके लिए पार्वती को तपस्या करके भोलेनाथ को समाधि से जगाना पड़ेगा. माता उनकी बात मान घोर तप करके भोलेनाथ को मना लेती है. और फिर उनका विवाह सम्पन्न हो जाता है. इसी उपलक्ष्य में यह त्यौहार सुहागिन अपने पति के साथ पाने और सदा सुहागन होने कि कामना हेतु मनाया करती है.      

सावन में तीज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?:- तीज का कल्याणकारी व्रत सुहागिनो के लिए उत्तम फलकारी होने के साथ ये व्रत कुंवारी लड़कियों के लिए भी विशेष वर प्राप्त करने वाला कहा गया है. जहाँ सुहागिन इस व्रत को करके अपने पति का प्रेम और उसका सच्चा साथ मिलने का माता गौरी से वरदान और आशीर्वाद मांगती है वहीं कुंवारी लड़कियां इस व्रत को विधि पूर्वक करके माता पार्वती से अपने लिए योग्य और सच्चा जीवन साथी मिलने का वरदान मांगती है. कहते है सच्चे मन से श्रद्धा पूर्वक पूजन आराधना करने पर माता गौरी अपने भक्तों की मनोकामना अवश्य ही पूरी करती है.

हरियाली तीज कब मनाई जाती है?:- यह त्यौहार श्रावण मास के शुक्ला पक्ष के तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 7 अगस्त 2024 दिन बुधवार को मनाया जायेगा.

तीज का त्यौहार कैसे मनाया जाता है:- यह त्यौहार माता पार्वती से आशीर्वाद और वरदान पाने का पर्व है. इस दिन स्त्रियां और लड़कियां व्रत और उपवास रहती है. वैसे बड़ा ही कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि -

1:-इस दिन व्रत करने पर जल या पानी नहीं ग्रहण किया जाता है. निर्जला व्रत का विधान है. 2:- सुहागिन स्नान के पश्चात 16 श्रृंगार करके, हाथों में मेहदी लगाकर और हरी साड़ी और हरी चूड़ियाँ धारण करती है. 3:- शाम को शिवालय में जाकर भोलेनाथ और माता पार्वती की विधि पूर्वक 16 प्रकार की सामग्रीयों (हल्दी, अक्षत, कुमकुम, मेहदी, पान आदि ) को अर्पित किया जाता है. 

4:- इस पूजन के बाद पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है. महिलाये पूजन के साथ-साथ गीत गायन भी करती है. 5:- माता पार्वती को घी की आरती करके उनसे अपनी मानोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद मांगती है.  



 6:- इस व्रत में शाम को कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है. 7:- अगले दिन स्नान ध्यान करने के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है. 8:- आज के दिन लड़कियाँ और सुहागिन झूला झूलकर खुशियाँ मानाती है.







डिस्कलेमर:- यह लेख एक सूचना मात्र है, विधिवत विधि विधान के लिए किसी विद्वान से सलाह लेने के बाद ही व्रत उपवास के नियमों का पालन करें.

Sunday, 21 July 2024

Kyon Hai Savan Ka Mahatv || Kyon Ki Jati Hai Lord Shiva Ki Pooja

   नातन धर्म में अति पवित्र मानजाने वाला श्रावण मास, इस बार इसका शुभारम्भ सोमवार के दिन से ही शुरू हो रहा है. यह संयोग वर्षो बाद ही बन पाता है. हिन्दू वर्ष के हिसाब से श्रावण मास वर्ष का पाँचवा माह है जबकि अंग्रेजी वर्ष के अनुसार यह मास जुलाई- अगस्त मे पड़ता है, और इस महीने कि सनातन धर्म ग्रंथो मे विशेष महिमा का वर्णन पढ़ने को मिलता है. वैसे भी गर्मी के मौसम मे चिलचिलाती गर्मी से परेशान लोगों मे सावन मास की शीतल बरसात मन को ख़ुशी से भर देती है. इसीलिए बरसात का मौसम क्या बूढ़े, बच्चे, स्त्री और जवान सबको कुछ ज्यादा ही प्रिय लगता है. गर्मी कि मार खाकर झुलस गए पेड़-पौधे नवजीवन कि तरुणाई पाकर हरे -भरे और लहलहा उठते है. इस बार सावन का एक महीना 29 दिन का है, और पूरे मास मे 5 सोमवार के दिन आपको मिल रहे है. 22 जुलाई से शुरू होने वाले इस श्रावण मास का हमारी आस्था से बड़ा ही गहरा नाता है. आखिर क्यों माना गया है ये महीना विशेष और क्यों है इसकी खास महत्ता हमारे धर्म ग्रंथो मे? इस सन्दर्भ मे बात करने लिए इस बिन्दुओ पर विचार महत्वपूर्ण है.

1: क्यों महत्त्व है सावन मास का:- ऐसा कहा जाता है कि माता सती भोलेनाथ से बिछड़ने के बाद उनसे पुनः मिलने के लिए व्याकुल हो उठी, भोलेनाथ सामाधीष्ट थे, उनसे मिलना असम्भव था. कहते है कि नारद मुनि ने भगवान शिव का पुनः सानिध्य पाने के लिए तपस्या करने मार्ग सुझाया, हालांकि ये रास्ता बहुत दुर्गम था लेकिन माता पार्वती ने भोलेनाथ के सानिध्य को पाने के लिए किसी प्रकार की परीक्षा से गुजरना मंजूर था. उन्होंने अपनी घोर तपस्या के बल से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और वह समय श्रावण मास था. माता पार्वती को उनके प्रिय भगवान शंकर का सानिध्य मिल गया इसलिए ये मास विशेष महत्व का मना गया है.                     

2: भगवान शंकर की क्यों की जाती है इस महीने मे खास पूजा: ऐसा माना जाता है कि मानव कल्याण के लिए जब समुन्द्र का मंथन किया जा रहा था तब उसमे 14 रत्नओं की प्राप्ति हुई थी, जिसे देवता और दनाव ने मिलकर आपस में बाँट लिया, परन्तु जब उसी समुद्र से काल कूट विष निकला तो किसी ने उसे हाथ लगाने का साहस नहीं किया. और यदि उस विष को धरती पर रखा जाता तो पूरी सृष्टि का समूल नाश तो तय था. तब सभी देवताओं के अनुनय विनय किया तो भोलेनाथ ने उस कालकूट विष को अपने कंठ में धारण कर लिया. उस विष को ग्रहण तो कर लिया लेकिन वह कंठ में ही अटक कर रह गया जिस वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया. और तब से उनका एक नाम नील कंठ भी पड़ गया. विष धारण करने से उनकी ऊर्जा इतनी बढ़ गई की उसे शांत करने के लिए देवताओं ने भोलेनाथ का जल, दूध और दही आदि से अभिषेक करना प्रारम्भ कर दिया. इसी मान्यता के कारण सावन मास में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना का विधान है. इसीलिए इस माह में भगवान भोलेनाथ शंकर की पूजा और अभिषेक करना उत्तम और तत्काल फालदयी होता है.                 

3: सावन मास में व्रत का क्या है महत्त्व:- प्रभु शिव जी बड़े ही भोले और दयालु कहे जाते है. सावन महीने में जिस तरह उन्होंने माता पार्वती को अपना सानिध्य प्रदान किया था, थी उसी तरह श्रद्धा और विश्वास के साथ जो भक्त सोमवार का व्रत और प्रेमपूर्वक भगवान शिव को जो प्रिय है उसको अर्पित (वेलपत्र, अक्षत, चन्दन, शहद, धतूरा, भांग ) करके जल, दूध, और दही से अभिषेक करता है तो भोलेनाथ प्रसन्न हो भक्तों का कल्याण करते है. इस मास में पूरे भारत में स्थापित बारह ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करना अति कल्याणकरी एवं महतम फालदाई माना गया है        

4: कौन करसकता है भगवान भोलेनाथ की पूजा:- शिव जी को अवढरदानी कहा जाता है, उनके दरबार में कोई किसी उम्र का श्रद्धा से सिर झुकाकर उनका आशीर्वाद पा सकता है. भगवान शंकर तो सिर्फ भाव के भूखे है. इसीलिए कन्याये अच्छे पति के लिए और स्त्रियां अपने पति, परिवार की सुख समृद्धि के लिए सावन में अभिषेक करके प्रभु को प्रसन्न करती है.          

5: क्यों की जाती है कावड़ यात्रा? :- कहते है भोलेनाथ ने भगीरथ के कठोर तप के कारण गंगा माँ को अपने सिर पर जटाओ में स्थान दिया था. इसीलिए भक्त इस सावन मास में माँ गंगा का जल भर कर देव भूमि हरिद्वार में जलाभिषेक करने दूर तक पैदल यात्रा करके प्रभु को उसी जल से अभिषेक करके पुण्य फल के भागी बनते है. भारत के पच्छिमी ततीय प्रदेश में सावन माह के अंतिम दिनों में नारियल पूर्णिमा का उत्सव मनाने का चलन देखने में आता है


6:क्यों पहनती है सावन में स्त्रियां हरे वस्त्र और चूड़ियाँ:- भगवान शिव को समर्पित ये सावन का महीना उत्सव और उल्लास के साथ मनाने के लिए उत्तर भारत एवं पूर्वी भारत में स्त्रियों के द्वारा गहरे हरे रंग के परिधान और चूड़ियों के साथ विशेष श्रृंगार करने का भी चलन देखा जा सकता है. हरा रंग जहाँ भोलेनाथ को अधिक प्रिय है वहीं इसके पीछे मकसद शायद ये भी होता है की इस समय धान की फसल खेत में लहलाहा रही होती है जो समृद्धि का प्रतीक है. इसकारण गृहणीया हरे परिधान में श्रृंगार कर भोलेनाथ से सुख और समृद्धि की प्रार्थना करती है.


विशेष व्रत और उपवास :- सावन के महीने में सोमवार का व्रत और उस दिन रुद्राभिषेक का बहुत ही अधिक महत्व माना जाता है, इसलिए यदि इस माह में भोलेनाथ का पंचाक्षरी मन्त्र     "नमः शिवाय " एवं महामृत्युंज मन्त्र 

"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

का शुद्ध अंतकरण से जप करना विशेष फलदाई माना जाता है.





डिस्कलेमर:- ये सारी जानकारी खास जानकारों की सूचना पर आधारित है, इसमे सुझाये गए व्रत उपवास और मंत्रो का जप इत्यादि पर अमल करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें. इसकी कोई जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी.







Saturday, 20 July 2024

Don't Give Up || Be self Motivated || क्यों निराश होना || Life is beautiful

हम समाज के बिना अपने अस्तित्व को स्थापित करने की कल्पना नहीं कर सकते है किन्तु बदलते वक्त के साथ समाज का परिवेश बदल ने के कारण समाज में तारतम्य को नये ढंग से गढ़ना अपरिहार्य बन चुका है. हालांकि तकनिकी विकास ने जहाँ समय को एक ओर बचाने का काम किया है तो दूसरी तरफ एक नई चुनौती खड़ी कर दी है कि इस बचे हुए समय का किया क्या जाए? वैसे खाली समय को चुटकी में उड़ा लेजाने की भी पूरी व्यवस्था है. पर क्या उसके सहारे रहा जा सकता है? आप अपना खाली वक्त जिस वर्चुअल दुनिया पर लुटा रहे हो वह बदले में आपको दें क्या रहा है! एक जाल से निकलकर दूसरे जाल में फसने कि सलाह, आप में हीनभावना के पनपने की उर्वरा भूमि बना रहा है. झूठे छालावे की दुनिया में जीने की प्रेरणा दें रहा है. इन परिस्थितियों में ना हम दूसरों के लिए कोई समाधान बन पा रहे है और ना हम अपने लिए ही.

उत्तरप्रदेश वृद्धाआश्रम || समाज कल्याण विभाग || उत्तरप्रदेश सरकार की पहल

  उत्तरप्रदेश वृद्धाआश्रम : वरिष्ठ नागरिकों का भरण- पोषण और सुरक्षा! उत्तरप्रदेश सरकार समाज में ऐसे वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान और उनकी सुरक्...